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मुंतजिर

शाम ए मुंतज़िर तड़पा रही है  तसव्वुर मैं कोई तस्वीर आ रही जा रही है।    नज़्म लिखूं , लिखूं बैहर या ग़ज़ल कोई।  तू कहे तो शायरी करूं तुझ पे  लिख दूं वो बात जो न बताई जा रही है                                        – कीर्ति 

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